जम्मू-कश्मीर कांग्रेस को 2024 के विधानसभा चुनावों में अपने राजनीतिक इतिहास की सबसे खराब हार का सामना करना पड़ा। 90 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस केवल छह सीटें ही जीत पाई, जो पार्टी के अस्तित्व पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं। इससे पहले, कांग्रेस का सबसे खराब प्रदर्शन 1996 के चुनावों में था, जब पार्टी ने सात सीटें जीती थीं। हालांकि, उस समय पार्टी ने जम्मू प्रांत के हिंदू-बहुल निर्वाचन क्षेत्रों जैसे नौशेरा, छंब, कालाकोट और बिलावर से जीत हासिल की थी। इस बार की हार न केवल संख्या के लिहाज से बल्कि राजनीतिक प्रभाव के संदर्भ में भी अधिक चिंताजनक है।
कांग्रेस की गिरावट के कारण
2024 के चुनाव में कांग्रेस की हार के पीछे कई कारण हैं। सबसे प्रमुख कारणों में नेतृत्व की कमी और पार्टी के भीतर गुटबाजी है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव से पहले या तो पार्टी छोड़ दी या निष्क्रिय भूमिका निभाई। इसके अलावा, स्थानीय मुद्दों को नजरअंदाज करना और जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के साथ कमजोर संपर्क ने भी पार्टी को नुकसान पहुंचाया।
अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक परिस्थितियों में बड़ा बदलाव आया। इस मुद्दे पर कांग्रेस का अस्पष्ट रुख पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हुआ। जहां एक ओर भाजपा ने इसे अपनी बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत किया, वहीं कांग्रेस इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने में विफल रही। इससे मतदाताओं में पार्टी की प्रतिबद्धता और दिशा को लेकर संदेह उत्पन्न हुआ।
जम्मू-कश्मीर में नए राजनीतिक समीकरण
2024 के चुनावों में कांग्रेस की हार के साथ, जम्मू-कश्मीर में नए राजनीतिक समीकरण उभर कर सामने आए हैं। भाजपा ने जम्मू में अपना वर्चस्व बनाए रखा, जबकि क्षेत्रीय पार्टियों जैसे नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने कश्मीर में अपनी पकड़ मजबूत की। इसके अलावा, नई क्षेत्रीय पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाई।
आगे की चुनौतियां और रास्ता
कांग्रेस के लिए यह समय आत्ममंथन और पुनर्गठन का है। पार्टी को न केवल अपनी संगठनात्मक संरचना को मजबूत करना होगा, बल्कि जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं और मतदाताओं के साथ मजबूत संबंध भी स्थापित करने होंगे। जम्मू प्रांत में पारंपरिक हिंदू बहुल सीटों पर अपनी पकड़ मजबूत करना और कश्मीर में युवा और महिलाओं को अपनी ओर आकर्षित करना पार्टी की प्राथमिकता होनी चाहिए।
इसके अलावा, कांग्रेस को नए नेतृत्व को प्रोत्साहन देना होगा और युवा चेहरों को आगे लाना होगा। स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता देते हुए एक स्पष्ट और सुसंगत नीति अपनानी होगी। अनुच्छेद 370 जैसे संवेदनशील मुद्दों पर पार्टी को एक ठोस रुख अपनाना होगा ताकि मतदाताओं का विश्वास बहाल किया जा सके।
निष्कर्ष
जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की ऐतिहासिक हार ने पार्टी के भविष्य को लेकर गंभीर चिंताएं उत्पन्न की हैं। यदि पार्टी अपनी रणनीतियों में बदलाव नहीं करती और वर्तमान चुनौतियों का सामना करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाती, तो उसका राजनीतिक अस्तित्व और भी कमजोर हो सकता है। आगामी वर्षों में पार्टी का प्रदर्शन इस बात पर निर्भर करेगा कि वह अपनी कमजोरियों को कैसे दूर करती है और नए सिरे से अपनी राजनीतिक पहचान कैसे स्थापित करती है।