जहाँ कभी अंधकार था, वहाँ अब उजास है। जम्मू-कश्मीर की दुर्गम करनाह घाटी में स्थित सिमारी गाँव न केवल नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर बसा भारत का पहला गाँव है, बल्कि यह भारत के लोकतंत्र और समावेशी विकास की जीवंत मिसाल भी बन चुका है।

वोट का पहला अधिकार, पोलिंग बूथ नंबर-1

सिमारी गाँव, जो भौगोलिक रूप से पाकिस्तान की सीमा से बेहद नज़दीक है और जिसका आधा हिस्सा शत्रु की नज़र में है, फिर भी यह भारतीय लोकतंत्र की पहली कड़ी — मतदान केंद्र संख्या 1 — होने का गौरव रखता है। यह गाँव दर्शाता है कि भारत का लोकतंत्र देश के सबसे दूरदराज और संवेदनशील इलाकों तक भी पहुँचता है, और हर नागरिक को समान अधिकार देने के लिए कटिबद्ध है।


सिमरी गांव की एक लड़की खुशी-खुशी एक बिजली के बल्ब को बंद और चालू कर रही है क्योंकि यह गांव पहली बार भारतीय सेना द्वारा विद्युत् से रोशन हुआ है।

अंधकार से प्रकाश की ओर: भारतीय सेना का अद्भुत हस्तक्षेप

लंबे समय तक, सिमारी गाँव बिजली की भारी कमी से जूझता रहा। केरोसिन लैंपों और लकड़ियों के धुएँ में लिपटे जीवन ने वहाँ की शिक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका सभी को प्रभावित किया। बच्चे धुंधली रोशनी में पढ़ते, महिलाएँ धुएँ से दमघोंटू रसोई में खाना बनातीं, और कई बार मामूली उपचार के लिए भी मीलों सफर करना पड़ता।

गाँववासियों की इस पीड़ा ने जब भारतीय सेना के चिनार कोर को झकझोरा, तब सेना ने ऑपरेशन सद्भावना के अंतर्गत पुणे की असीम फाउंडेशन के सहयोग से एक क्रांतिकारी समाधान प्रस्तुत किया—जो केवल घरों को रोशन नहीं करता, बल्कि ज़िंदगी को भी नया आयाम देता है।


गाँव का कायाकल्प: ऊर्जा, स्वच्छता और आत्मनिर्भरता की ओर

🌞 सोलर माइक्रो-ग्रिड से 24×7 बिजली

गाँव में चार सोलर क्लस्टर स्थापित किए गए, जिनमें उन्नत सोलर पैनल, इनवर्टर और बैटरी बैंक शामिल हैं। इससे पूरे गाँव को 24 घंटे निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित हो पाई है। यह सिर्फ एक सुविधा नहीं, बल्कि जीवन की गुणवत्ता में ऐतिहासिक सुधार है।

💡 हर घर अब रोशन और सुरक्षित

सिमारी के सभी 53 घर, जिनमें कुल 347 लोग निवास करते हैं, अब एलईडी लाइट्स, सुरक्षित पावर सॉकेट और ओवरलोड प्रोटेक्शन लिमिटर जैसी आधुनिक सुविधाओं से युक्त हैं। बिजली अब डर नहीं, भरोसे का नाम बन चुकी है।

🍲 धुएँ से मुक्ति, रसोई में स्वच्छता

डबल-बर्नर गैस चूल्हों और एलपीजी कनेक्शन की सुविधा ने लकड़ी या जलावन पर निर्भरता समाप्त कर दी है। इससे महिलाओं को धुएँ से राहत मिली है और बच्चों का स्वास्थ्य भी सुरक्षित हुआ है। साथ ही, जंगलों पर दबाव कम कर पर्यावरण को भी संरक्षित किया गया है।

🛠️ स्थानीय युवाओं को तकनीकी प्रशिक्षण

असीम फाउंडेशन के इंजीनियरों ने स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण देकर यह सुनिश्चित किया कि गाँव न केवल उपभोगकर्ता रहे, बल्कि स्वयं रखरखाव में सक्षम और आत्मनिर्भर बने। यह स्थानीय भागीदारी विकास की रीढ़ बन गई है।


एक वीर सपूत की स्मृति में समर्पित परियोजना

यह संपूर्ण परियोजना भारतीय सेना के शूरवीर कर्नल संतोष महाडिक, शौर्य चक्र (मरणोपरांत) को समर्पित है, जिन्होंने 17 नवंबर 2015 को कुपवाड़ा में आतंकियों से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की थी। अपने नेतृत्व, कर्तव्यपरायणता और कश्मीर के लोगों के प्रति प्रेम के लिए प्रसिद्ध कर्नल महाडिक की स्मृति में यह गाँव अब विकास की जीवंत गाथा बन चुका है।

इस प्रेरणादायक परियोजना का उद्घाटन समारोह 14 अप्रैल 2025 को सिमारी गाँव में आयोजित होगा, जिसमें कर्नल महाडिक की माँ श्रीमती इंदिरा महाडिक और उनकी बहन विशेष रूप से उपस्थित होंगी। उनके साथ तंगधार ब्रिगेड के कमांडर और कुपवाड़ा के उपायुक्त भी गाँव के साथियों के इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बनेंगे।


सीमा पर रोशनी, हर दिल में उम्मीद

सिमारी अब सिर्फ एक गाँव नहीं, एक प्रतीक बन चुका है—एक ऐसी जगह, जहाँ सेना सिर्फ सुरक्षा नहीं, बल्कि विकास और संवेदना भी लेकर आती है। जहाँ नागरिक सिर्फ समस्याओं से नहीं, बल्कि संभावनाओं से जुड़े हैं। और जहाँ राष्ट्र अपने पहले पोलिंग बूथ को प्रकाश और गरिमा के साथ सजाए रखता है।

यहाँ की खिड़कियों से झाँकती रोशनी, कर्नल महाडिक की विरासत को जीवित रखती है—हर कक्षा में, हर चूल्हे में, और हर वोट की ऊष्मा में


“बेहतर कल के लिए एक साथ खड़े” — भारतीय सेना, नागरिक समाज और सिमारी की साझी उम्मीद

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